शारदीय नवरात्रि क्यों मनाई जाती है
हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है। नवरात्रि पर्व के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि मां दुर्गा की आराधना करने से जीवन में आ रही सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। शारदीय नवरात्रि की शुरुआत अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। वहीं इसका समापन दशमी तिथि को विजयदशमी पर्व के साथ हो जाता है।
शारदीय नवरात्रि 2023 तिथि और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, शारदीय Navratri आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है और साल 2023 में इस तिथि का शुभारंभ 11 अक्टूबर रात्रि 11 बजकर 24 मिनट से होने जा रहा है और समापन 16 अक्टूबर को मध्य रात्रि 12 बजकर 32 मिनट पर होगा। ऐसे में अगर आप कंफ्यूज हैं कि नवरात्रि कब है तो आप ये जान लें कि शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर को शुरू होने जा रही है।
शारदीय नवरात्रि 2023 में कलश स्थापना मुहूर्त
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है जिसका विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और किसी धार्मिक अनुष्ठान में कलश स्थापना करना सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। क्योंकि बिना कलश के धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता है। इसलिए माँ दुर्गा की प्रतिमा के आगे कलश रखा जाता है। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त दिन में 11 बजकर 44 मिनट से शुरू है जो दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा वही घटस्थापना के लिए आपको 46 मिनट का समय प्राप्त होगा।
विजयदशमी की तिथि 2023
2023 विजयादशमी 24 अक्टूबर को पड़ रही है तब नवरात्रि का समापन माना जाता है। इसी दिन दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में दशहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था तब से हर साल इस दिन को एक विशेष उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
नौ दिनों तक नवरात्रि मनाने से जुड़ी मान्यता
नवरात्रि का पर्व मनाए जाने के पीछे कई तरह की मान्यता है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, महिषासुर नाम का एक दैत्य था। ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान पाकर वह देवताओं को सताने लगा था। महिषासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा के पास गए। इसके बाद तीनों देवताओं ने आदि शक्ति का आवाहन किया। भगवान शिव और विष्णु के क्रोध व अन्य देवताओं से मुख से एक तेज प्रकट हुआ, जो नारी के रूप में बदल गया। अन्य देवताओं ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इसके बाद देवताओं से शक्तियां पाकर देवी दुर्गा ने महिषासुर को ललकारा। महिषासुर और देवी दुर्गा का युद्ध शुरू हुआ, जो 9 दिनों तक चला। फिर दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। मान्यता है कि इन 9 दिनों में देवताओं ने रोज देवी की पूजा-आराधना कर उन्हें बल प्रदान किया। तब से ही नवरात्रि का पर्व मनाने की शुरुआत हुई।
भगवान राम से भी जुड़ी है मान्यता
नवरात्रि की एक कथा भगवान श्रीराम से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि माता सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने और रावण पर विजय पाने के लिए श्री राम ने देवी दुर्गा का अनुष्ठान किया। ये अनुष्ठान लगातार 9 दिन तक चला। अंतिम दिन देवी ने प्रकट होकर श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन श्रीराम ने रावण का वध कर दिया। प्रभु श्रीराम ने आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक देवी की साधना कर दसवें दिन रावण का वध किया था। तभी से हर साल नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
नवरात्रि के नौ दिन होती है,माता रानी के नौ रुपों की पूजा
पहला स्वरूप- मां शैलपुत्री
नवरात्रि के प्रथम दिन माता के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है। मां पार्वती को शैलपुत्री के नाम से भी जाना जाता है। पर्वतराज हिमालय के घर पर जन्म लेने के कारण मां पार्वती को शैलपुत्री कहा जाता है। शैल का शाब्दिक अर्थ पर्वत होता है।
दूसरा स्वरूप - मां ब्रह्मचारिणी
माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए वर्षों कठोर तप किया था। इस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम मिला। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है कठोर तपस्या का आचरण करने वाला।
तीसरा स्वरूप - मां चंद्रघंटा
मां पार्वती के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा के आकार का तिलक लगा रहता है, इस कारण उनका एक स्वरूप चंद्रघंटा कहलाता है।
चौथा स्वरूप - माता कुष्मांडा
मां आदिशक्ति ने अपने भीतर उदर से अंड तक ब्रह्मांड को समेट रखा है। उनमें पूरे ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति है, इसलिए उन्हें माता कुष्मांडा के नाम से भी जाना जाता है।
पांचवा स्वरूप - स्कंद माता
माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय जी को स्कंद के नाम से भी जाना जाता है। इस कारण मां पार्वती को स्कंद माता भी कहते हैं।
छठा रूप - कात्यायनी माता
महिषासुर नामक अत्याचारी दैत्य का वध करने के लिए ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों ने मिल कर अपने तेज से माता को उत्पन्न किया था। देवी के प्रकट होने के बाद सबसे पहले उनके पूजा महर्षि कात्यायन ने की थी। इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा।
सातवां स्वरूप - मां कालरात्रि
संकट हरने के लिए माता के कालरात्रि स्वरूप का जन्म हुआ। संकट को काल भी कहते हैं, हर तरह के काल का अंत करने वाली मां कालरात्रि कहलाती हैं। उनके पूजन से सभी संकटों का नाश होता है।
आठवां स्वरूप - महागौरी
भगवान शिव की अर्धांगिनी बनने के लिए माता गौरी ने वर्षों तक इतना तप किया था कि वह काली पड़ गई थीं। बाद में महादेव ने उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया था। उसके बाद भोलेनाथ ने माता गौरी को गंगाजी के पवित्र जल से स्नान कराया। मां गंगा के पवित्र जल से स्नान के बाद माता का शरीर बहुत गोरा और अद्भुत कांतिमान हो उठा, तब उसे उनका नाम महागौरी हो गया।
नौवां स्वरूप - सिद्धिदात्री
माता का नौवां स्वरूप सिद्धिदात्री है। वह भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती है। इस कारण उन्हें सिद्धिदात्री कहते हैं। मान्यता है कि माता के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी देवियों की उपासना हो जाती है।
नवरात्रि के दसवें दिन ही क्यों मनाई जाती है विजयदशमी?
यह एक ऐसा सवाल है जो शायद आपके मन में कई बार-बार आता होगा। आज आपको इसका जवाब मिलने वाला है। हम सभी जानते हैं कि शारदीय नवरात्र की शुरुआत भगवान राम ने की थी। भगवान राम ने समुद्र के किनारे अश्विन माह में मां दुर्गा के नवरूपों की पूजा शुरू की थी। इसमें चंडी पूजा सबसे खास थी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त करने की आकांक्षा लेकर 9 दिनों तक लगातार शक्ति की पूजा की थी। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर 9वें दिन जब मां भगवती ने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया तब वह दसवें दिन लंका पहुंचकर उन्होंने रावण का वध किया। मान्यता है कि तब से ही नवरात्रि पूजन के बाद दसवें दिन असत्य पर सत्य की जीत का पर्व विजय दशमी मनाया जाने लगा।
लंका युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए ब्रह्माजी ने श्रीराम को चंडी देवी की पूजा की सलाह दी थी। उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा था कि चंडी देवी के पूजन में वह दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल का प्रयोग जरूर करें। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरत्व प्राप्ति के लिए चंडी मां की पूजा के लिए यज्ञ और पाठ का आयोजन किया। रावण को जब पता चला कि भगवान श्रीराम भी चंडी यज्ञ कर रहे हैं तो उसने अपनी माया से भगवान श्रीराम के पूजा में शामिल होने वाले नीलकमल में से एक नीलकमल गायब कर दिया। यह बात जब भगवान श्रीराम को पता चली तो भगवान को याद आया कि उन्हें भी लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं और ऐसा स्मरण कर उन्होंने अपने नयन को निकालने के लिए तलवार निकाल ली, तभी माता चंडी वहां प्रकट हुईं और कहा कि वह उनकी भक्ति से बेहद प्रसन्न हैं और उन्हें लंका पर विजय का आशीर्वाद दे दिया।
नवरात्रि भारत के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न तरह से मनाई जाती है
गुजरात
गुजरात एकमात्र ऐसा स्थान है जहां नवरात्रि के सभी नौ दिन अत्यंत उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। गरबा डांस, मंत्रमुग्ध कर देने वाली डांडिया नाइट, टेस्टी खाना और दुर्गा के खूबसूरती से सजाए गए मंदिर पर्यटकों को बेहद आकर्षित करते हैं।
दिल्ली
देश की राजधानी दिल्ली में नवरात्रि और दुर्गा पूजा के उत्सव एक साथ आते हैं। दिल्ली में बंगालियों की एक बड़ी आबादी है और इसलिए शहर में शानदार दुर्गा पूजा का आयोजन होना भी लाजमी है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि दिल्ली में डांडिया नाइट नहीं होती, हालांकि महाराष्ट्र पर गुजरात की डांडिया नाइट का कोई मुकाबला नहीं है, लेकिन फिर भी आपको दिल्ली में कुछ जगह मिल जाएंगी जहां इस तरह के आयोजन किए जाते हैं। नवरात्रि का शानदार आयोजन रामलीला मैदान में भी किया जाता है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के लोग भी नवरात्रि के उत्सव की भावना में डूबने के लिए तैयार रहते हैं। महाराष्ट्र में नवरात्रि उत्सव गुजरात जैसा ही मनाया जाता है। महाराष्ट्र में लोग नवरात्रि को एक नई शुरुआत के रूप में मनाते हैं, और अपने घर के लिए कुछ नया खरीदते हैं।
पश्चिम बंगाल
नवरात्रि को बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि के अंतिम चार दिन अत्यधिक उत्साह के साथ मनाए जाते हैं, और पूरा पश्चिम बंगाल रंगों और रोशनी से सुशोभित हो उठता है। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा स्वर्ग से धरती पर अपने मायके आती हैं, और उनका बहुत गर्मजोशी और प्यार से स्वागत किया जाता है।
आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश में नवरात्रि को "बथुकम्मा पांडुगा" के रूप में मनाया जाता है, जिसका अर्थ है 'आओ जीवित मां देवी'। नवरात्रि उत्सव देवी गौरी को समर्पित है, और देवी की मूर्ति बथुकम्मा नामक फूल के ढेर में स्थापित की जाती है। यह न केवल सबसे महत्वपूर्ण में से एक है, बल्कि आंध्र प्रदेश में विशेष रूप से तेलंगाना क्षेत्र में सबसे बड़ा त्योहार भी है।
शारदीय नवरात्रि की संपूर्ण पूजा विधि-
कलश स्थापना के लिए सामग्रियां
कलश, मौली, आम के पत्ते का पल्लव (5 आम के पत्ते की डली), रोली, गंगाजल, सिक्का, गेहूं या अक्षत।
जवार बोने के लिए सामग्री
मिट्टी का बर्तन, शुद्ध मिट्टी, गेहूं या जौ, मिट्टी पर रखने के लिए एक साफ कपड़ा, साफ जल, और कलावा।
अखंड ज्योति जलाने के लिए
पीतल या मिट्टी का दीपक, घी, रूई बत्ती, रोली या सिंदूर, अक्षत।
नौ दिन के लिए हवन सामग्री
नवरात्रि पर भक्त पूरे नौ दिन तक हवन करते हैं। इसके लिए हवन कुंड, आम की लकड़ी, काले तिल, रोलीया कुमकुम, अक्षत(चावल), जौ, धूप, पंचमेवा, घी, लोबान, लौंग का जोड़ा, गुग्गल, कमल गट्टा, सुपारी, कपूर, हवन में चढ़ाने के लिए भोग, शुद्ध जल (आचमन के लिए)।
माता रानी के श्रृंगार के लिए सामग्री
नवरात्रि में माता रानी को श्रृंगार भी अर्पित करना चाहिए। ये श्रृंगार सामग्री माता रानी के लिए लयनी आवश्यक है। लाल चुनरी, चूड़ी, इत्र, सिंदूर, महावर, बिंदी, मेहंदी, काजल, बिछिया, माला, पायल, लाली व अन्य श्रृंगार के सामान।
कलश स्थापना पूजा विधि-
- शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पहले दिन घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वास्तिक बनाकर मुख्य द्वार पर आम और अशोक के पत्ते का तोरण लगाएं।
- इसके बाद एक चौकी बिछाकर वहां पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाएं।
- उसके बाद रोली और अक्षत से टीकें और फिर वहां माता की प्रतिमा स्थापित करें।
- उसके बाद विधिविधान से माता की पूजा करें।
- उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में कलश रखना चाहिए और माता की चौकी सजानी चाहिए।
- कलश पर नारियल रखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नारियल का मुख नीचे की तरफ न हो।
- कलश के मुंह पर चारों तरफ अशोक के पत्ते लगाएं और फिर एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से इसे बांध दें।
- अब अम्बे मां का आह्वान करें। इसके बाद दीपक जलाकर पूजा करें|
नवरात्रि के नौ दिन, भूल कर भी न करें यह काम-
- घर को बिल्कुल भी अकेला न छोड़ें।
- कन्याओं से अमर्यादित बातें बिल्कुल न करें।
- लहसुन-प्याज का सेवन करने से बचें।
- मांसाहारी खाने और शराब का सेवन बिल्कुल न करें।